अगर आप हमारे देश हमारी राजनीति हमारे गणतंत्र एवं स्वतंत्रता की कहानियों एवं सच्चाई के ऊपर रुचि रखते हैं तो, आपके मस्तिष्क में गुलजारी लाल नंदा का नाम तो अवश्य आता होगा, वह व्यक्ति जिसने स्वतंत्रता के समय खुद को बड़े नेताओं के पीछे रखा और जब देश को उनकी जरूरत थी , तो उन्होंने बखूबी अपना किरदार निभाया।
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गुलजारी लाल नंदा:
कोई आश्चर्यचकित हो सकता है कि अगर लोग गुलजारी लाल नंदा में रुचि रखते हैं तो, उन्होंने २६ दिनों के लिए, पी एम कि प्रतिष्ठित कुर्सी पर बैठ्ने का अवसर मिला। एक बार जब १९६४ में जवाहरलाल नेहरू का निधन हुआ और फिर १९६६ में जब लाल बहादुर शास्त्री का निधन हुआ तब।
सभी सम्भावनाओं में, वह शायद ऐसे कई लोगों में से एक थे जिन्होंने आजादी से पहले महात्मा जी के पीछे दौड़ लगाई और १९४७ के बाद नेहरूवादी समाजवाद की स्थापना के लिए एक भरोसेमंद व्यक्तित्व बन गए। ओर देश के प्रधानमंत्री बन कर उभरे l
गुलजारी लाल नंदा के संघर्षों का दौर:
गुलजारी लाल नंदा का जन्म ४ जुलाई १८९८ को ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के सियालकोट में एक हिंदू गुर्जर परिवार में हुआ था। गुलजारी लाल नंदा ने लाहौर, आगरा और इलाहाबाद में अपनी शिक्षा प्राप्त की। १९४७ में ब्रिटिश भारत के भारत और पाकिस्तान में विभाजन के बाद, सियालकोट पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का एक हिस्सा बन गया।
गुलजारी लाल नंदा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय ( १९२०- १९२१ ) में श्रम समस्याओं पर एक शोध विद्वान के रूप में काम किया और १९२१ में बॉम्बे (मुंबई) में नेशनल कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने। उसी वर्ष, वह अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। १९२२ में, वे अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन के सचिव बने जहाँ उन्होंने १९४६ तक काम किया। १९३२ में उन्हें सत्याग्रह के लिए जेल में रखा गया, और फिर १९४२ से १९४४ तक भी।
ब्रिटिश राज में, बॉम्बे विधान सभा के सदस्य:
गुलजारी लाल नंदा १९३७ में बॉम्बे विधान सभा के लिए चुने गए, और १९३७ से १९३९ – १९४६ – १९५० तक बॉम्बे सरकार में संसदीय सचिव (श्रम और आबकारी) के रूप में कार्य किया, उन्होंने राज्य विधानसभा में श्रम विधेयक को सफलतापूर्वक पास किया। उन्होंने कस्तूरबा मेमोरियल ट्रस्ट के ट्रस्टी के रूप में भी कार्य किया। उन्होंने हिंदुस्तान मजदूर सेवक संघ (भारतीय श्रम कल्याण संगठन) के सचिव और बॉम्बे हाउसिंग बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। वह राष्ट्रीय योजना समिति के सदस्य थे। वह भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के आयोजन में बड़े पैमाने पर सहायक थे, और बाद में इसके अध्यक्ष बने।
१९४७ में, वे अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन में आधिकारिक प्रतिनिधित्व के रूप में जिनेवा गए। उन्होंने एदोम की स्वतंत्रता की समिति के काम पर काम किया और स्वीडन, फ्रांस, बेल्जियम और इंग्लैंड का दौरा किया और उन देशों में श्रम और आवास की स्थिति का अध्ययन किया।
मार्च १९५० में, वह योजना आयोग में उसके उपाध्यक्ष के रूप में शामिल हुए। अगले वर्ष सितंबर में, उन्हें केंद्र सरकार में योजना मंत्री नियुक्त किया गया। इसके अलावा, सिंचाई और बिजली के विभागों का चार्ज भी दिया गया था। उन्हें १९५२ के आम चुनावों में बॉम्बे से हाउस ऑफ पीपुल के लिए चुना गया था और सिंचाई और बिजली योजना के लिए फिर से नियुक्त किया गया था। उन्होंने १९५५ में सिंगापुर में आयोजित योजना परामर्श समिति और १९५९ में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन जिनेवा में आयोजित किया।
श्री गुलजारी लाल नंदा को १९५७ के आम चुनावों में लोकसभा के लिए चुना गया था, और उन्हें श्रम और रोजगार योजना और बाद में योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में केंद्रीय मंत्री नियुक्त किया गया था। उन्होंने १९५९ में संघीय गणराज्य जर्मनी, यूगोस्लाविया और ऑस्ट्रिया का दौरा किया।
वह १९६२ में गुजरात के साबरकांठा सीट से आम चुनाव में फिर से लोकसभा के लिए चुने गए। उन्होंने १९६२ में समाजवादी कांग्रेस की शुरुआत की। वह १९६२ और १९६३ में केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्री और १९६३ से १९६६ तक गृह मामलों के मंत्री रहे।
अंग्रेजी में १ वाक्यांश हैं “अ फ्रेंड इन नीड इज अ फ्रेंड इनडीड ” नंदा जी का भी चरित्र हमारे देश के लिए कुछ ऐसा ही था जब भी भारत को एक अच्छे प्रधानमंत्री की जरूरत थी उन्होंने अपना काम बखूबी किया l नंदा हर चौदह दिनों में दो बार भारत के अंतरिम मुख्यमंत्री थे: १९६४ में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद पहली बार, और १९६६ में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद दूसरी बार, उनका नेतृत्व असामान्य , था l १९६२ में चीन के साथ युद्ध और १९६५ में पाकिस्तान के साथ युद्ध के बाद शास्त्री की मौत के बाद देश के लिए संभावित खतरे को संभाल लियाl
नंदा जी का का व्यक्तित्व एवं उपलब्धियां : नंदा पेड़ के उस तने के प्रकार थे जो अपने डालियों एवं पत्तियों गिरने पर निराश नहीं होता जबकि नई डालियां और पत्तियां हमेशा प्राप्त करवाता है और हर कदम मजबूती से खड़ा रहकर अपने सहभागी का साथ देता है और जब तक उसमें जान है जड़ रूपी देश संस्कृति भाषा एवं स्वतंत्रता के लिए लड़ता रहता है।
उनके व्यक्तित्व का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश में इतने महत्वपूर्ण एवं बड़े नेता होने के बावजूद गंभीर परिस्थिति में जब देश को सख्त एवं दृढ़ व्यक्तित्व की जरूरत थी तब इन्हे प्रधानमन्त्री की कुर्सी के लिए चुना गया और इन्होंने भी मजबूती से सामने आकर एवं बाकी नेताओं की मदद एवं भरोसे से देश के प्रधानमंत्री बने l
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